फैक्ट्री में रात के गहरे सन्नाटे के बीच मशीनों की गूंजती आवाजें मेरे लिए कभी सुकून का एहसास थीं। मैं अपनी डेस्क पर झुका हुआ, इंजन के डिज़ाइन पर काम कर रहा था। यह नौकरी, जिसका मैंने वर्षों तक सपना देखा था, अब मुझे 2000 किलोमीटर दूर, मेरे परिवार से, और उनसे—मेरी नानी से—दूर रख रही थी।
इन्हीं व्यस्त रातों में एक दिन फोन आया। मेरी मां का नंबर स्क्रीन पर चमक रहा था। उन्होंने टूटते हुए स्वर में कहा,
“नानी ठीक नहीं हैं… डॉक्टर कहते हैं कि अब ज्यादा समय नहीं बचा।”
यह सुनते ही मेरे चारों ओर सब कुछ थम गया। बचपन की यादें आंखों के सामने दौड़ने लगीं—नानी के हाथों की कोमल झुर्रियां, उनके हाथों से सना हुआ आटा, उनकी कहानियां, और वह प्यार जो हमेशा मुझे एक कंबल की तरह लपेट लेता था।
खोने से पहले की दास्तां
सच धीरे-धीरे सामने आया। मेरी नानी, जो कभी इतनी मजबूत और जीवंत थीं, महीनों से बीमार चल रही थीं। मामूली खांसी ने गंभीर बीमारी का रूप ले लिया, लेकिन हमारे छोटे से कस्बे में उचित स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी ने उनकी हालत को और बिगाड़ दिया।
उसके ऊपर, एक पुराना ज़ख्म था—उनकी टांग में फ्रैक्चर हो गया था, जिसे कभी सही से प्लास्टर नहीं किया गया।
जब मां ने मुझे सब कुछ बताया, तो मेरी आंखों के सामने अंधेरा छा गया। मां ने कहा, “डॉक्टर ने प्लास्टर के लिए 3,000 रुपये मांगे थे, लेकिन पुरा खर्च 10000 का था. लेकिन नानी ने इनकार कर दिया।”
“उन्होंने कहा, ‘इतना पैसा अपने ऊपर कैसे खर्च कर सकती हूं?’ उन्होंने सोचा कि दर्द सह लेना बेहतर होगा, लेकिन घर पर बोझ नहीं डालेंगी।”
यह सुनकर मैं ठहर गया। 10,000 रुपये—यही वह राशि थी जो मैं शहर में हर महीने अपने किराए के लिए दे रहा था। मैं अपनी ज़िंदगी बनाने में इतना व्यस्त था और दुसरी तरफ नानी अपने दर्द और तकलीफ को चुपचाप सह रही थीं।
हम दोनों की समझ
यह विडंबना थी कि मेरी नानी, जिन्होंने हमेशा दूसरों के लिए बलिदान दिया, ने स्वास्थ्य की अहमियत तब समझी जब उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा था। अपनी अंतिम दिनों में, उन्होंने मां से कहा था,
“मैं अब दुनिया से जा रही हुॅं मेरा इतना ही समय इस धरती पर था हमेसा खुश रहना”
मेरे लिए यह एहसास और भी गहरा था। मैं यह सोचता रहा कि वित्तीय स्थिरता और करियर की सफलता ही मेरे परिवार के लिए सबसे बड़ा योगदान होगा। लेकिन जो उन्हें सबसे ज्यादा चाहिए था, वह मेरा समय और मेरी उपस्थिति थी। क्यों मेरे को इतनी दुर जाना पड़ा क्यों बिहार जैसा राज्य बेबस है .
एक इंजीनियर के रूप में, मैंने हमेशा समस्याओं का समाधान खोजने के लिए मशीनें डिज़ाइन कीं। लेकिन मैं अपने घर की सबसे बड़ी समस्या—स्वास्थ्य सेवाओं की कमी और नानी की चुप्पी—को समझ नहीं पाया।
आगे का रास्ता
उनकी मृत्यु ने मेरे अंदर बदलाव की लहर ला दी। मैं उन्हें वापस नहीं ला सकता था, लेकिन उनके नाम पर कुछ कर सकता था। मैंने अपने कस्बे में बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं और जागरूकता लाने के लिए काम करने के बारे में सोचना शुरू किया। विडंम्बना है की आज भी छह साल हो गए और सोच ही रहा हुॅं. और फिर नौकरी ढुंढ रहा हूॅं